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    तैयारी विस्फोट को झेलने की - ओशो

     

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    तैयारी विस्फोट को झेलने की  - ओशो 


    कुछ करो नहीं, बस देखो। नाटक के एक दर्शक की भांति। नाट्यगृह में—पर नाटक में नहीं। शरीर नाट्यगृह है और तुम दर्शक हो। ऊर्जा उठती है—ऊर्ध्वगामी होती है तो ऐसे ही आघातों से तन-तंतु कांप-कांप उठते हैं। ऊर्जा अपना नया यात्रा-पथ निर्माण करती है तो आंधी में सूखे पत्तों की भांति शरीर आंदोलित होता है। फिर जैसे-जैसे नए प्रवाह-पथ निर्मित हो जाएंगे वैसे-वैसे ही शरीर की पीड़ा खो जाएगी। फिर आज जो आघात-जैसा प्रतीत होता है, वही आनंद की पुलक बन जाता है। ऐसे आनंद की जो कि शरीर में घटित होता है, पर शरीर का नहीं है। और निकट है वह क्षण। पर उसके पूर्व बहुत बार तूफान आएगा ऊर्जा का और चला जाएगा। तूफान उठेगा और शांत हो जाएगा। इससे चिंतित मत होना। क्योंकि, ऐसे ही विस्फोट (एक्सप्लोज़न) की तैयारी होती है। गौरीशंकर के शिखर-अनुभव ( पीक-एक्सपीरियेसेज़) के पूर्व अनेक छोटे-छोटे शिखरों के अनुभव से गुजरना पड़ता है। उससे ही विराट को बूंद में झेलने की क्षमता निर्मित होती है।

     - ओशो 

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