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    दुनिया में कम्युनिज्म स्थापित हो जाए फिर क्रांति कभी भी पैदा नहीं होगी - ओशो

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    दुनिया में कम्युनिज्म स्थापित हो जाए फिर क्रांति कभी भी पैदा नहीं होगी  - ओशो 

    एक बार दुनिया में कम्युनिज्म स्थापित हो जाए फिर क्रांति कभी भी पैदा नहीं हो सकती । और कम्युनिज्म के हाथ में अगर पूरी ताकत हो राज्य के हाथों में, तो उसके पास अब नई शोधें भी हैं मनुष्य के मस्तिष्क को पूरी तरह रूपांतरित करने के लिए। बायोकेमिकली आदमी के पूरे व्यक्तित्व को बदलने के लिए और उसे एक आटोमैटिक मशीन की तरह काम लेने के लिए आज पूरी सुविधाएं उपलब्ध हो गई हैं। राज्य के हाथ में जिस दिन पूरी ताकत होगी, तो राज्य को संभालने वाले लोगों को रोकने के लिए कौन होगा कि वह आदमी की पूरी आत्मा को तोड़ न डाले ?

    इतनी ताकत आज राज्य को देनी सबसे ज्यादा खतरनाक है। पहले कभी इतनी खतरनाक नहीं थी; क्योंकि राज्य के पास आदमी की आत्मा को नष्ट करने का कोई उपाय न था। अब तक दुनिया में आदमी के शरीर कैदी बनाए गए थे और आत्मा सदा से स्वतंत्र रही थी। एक कैदी भी जेल के भीतर शरीर से बंधा हुआ था लेकिन आत्मा से मुक्त था। वह खयाल छोड़ दें अब, अब कैदी की आत्मा को भी बांधा जा सकता है और नष्ट किया जा सकता है। क्रांति की सारी संभावना रोकी जा सकती परिवर्तन की सारी संभावना रोकी जा सकती है। ऐसे खतरनाक समय में इस देश में भी समाजवाद के विचार के प्रति लोगों का आकर्षण रोज गहरा से गहरा होता चला जा रहा है।

    जितनी दीनता बढ़ेगी, जितनी दरिद्रता बढ़ेगी, जितना सामाजिक विपन्नता और परेशानी बढ़ेगी — हमें एक ही खयाल सूझने लगेगा—समाजवाद, समाजवाद, समाजवाद और शायद हम यह भूल ही जाएंगे कि समाजवाद के पूरे के पूरे अर्थ समाज के जीवन के लिए क्या हो सकते हैं। मनुष्य के व्यक्तित्व में व्यक्तिगत संपत्ति एक बल देती है, जिस आदमी से हमने व्यक्तिगत संपत्ति छीन ली, हमने उसके व्यक्तित्व का नब्बे प्रतिशत हिस्सा छीन लिया, उसके पास बल समाप्त हो गया।

    सच तो यह है कि विश्व में व्यक्तिगत संपत्ति पैदा होने की वजह से, प्राइवेट प्रापर्टी पैदा होने की वजह से पर्सनैलिटी पैदा हुई, व्यक्तित्व पैदा हुआ। जब तक व्यक्तिगत संपत्ति नहीं थी आदमी का कोई व्यक्तित्व न था, समूह का व्यक्तित्व था । और अगर हम समूह के और राज्य के हाथों में वापस सारी संपदा दे देते हैं तो फिर समूह का व्यक्तित्व होगा और व्यक्ति का कोई व्यक्तित्व नहीं होगा ।

     - ओशो 

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