ध्यान मृत्यु पर - ओशो
ध्यान मृत्यु पर - ओशो
मृत्यु के सीधे साक्षात से जीवन अधिक प्रामाणिक हो जाता है। लेकिन हम सदा मृत्यु के तथ्य से बचने की कोशिश करते हैं। और इससे जीवन मिथ्या और कृत्रिम बन जाता है। और मृत्यु से भी बदतर। क्योंकि प्रामाणिक मृत्यु का भी अपना एक सौंदर्य है। जब कि मिथ्या जीवन मात्र कुरूप है। मृत्यु पर ध्यान करो—क्योंकि मृत्यु का साक्षात किए बिना जीवन को जानने का उपाय नहीं है। और वह सब कहीं है। जहां कहीं जीवन है, मृत्यु भी है। वे, वास्तव में, उसी एक घटना के दो पहलू हैं। और जब कोई यह जान लेता है—वह दोनों का अतिक्रमण कर जाता है। और केवल उसी अतिक्रमण में चेतना समग्ररूपेण खिलती है। और होता है सत्ता का आनंद।
- ओशो
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