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    अलौकिक अनुभवों की वर्षा—कुंडलिनी-जागरण पर - ओशो

     

    Rain-of-Supernatural-Experiences-On-Kundalini-Awakening-Osho

    अलौकिक अनुभवों की वर्षा—कुंडलिनी-जागरण पर - ओशो 

    कुंडलिनी जागती है, तो ऐसा ही होता है। विद्युत दौड़ती है शरीर में। मूलाधार पर आघात लगते हैं। शरीर गुरुत्वाकर्षण (ग्रेविटेशन) खोता मालूम पड़ता है। और अलौकिक अनुभवों की वर्षा शुरू हो जाती है। प्राण अनसुने नाद से आपूरित हो उठते हैं। रोआं-रोआं आनंद की पुलक में कांपने लगता है। जगत प्रकाश-पुंज मात्र प्रतीत होता है। इंद्रियों के लिए बिलकुल अबूझ अनुभूतियों के द्वार खुल जाते हैं। प्रकाश में सुगंध आती है। सुगंध में संगीत सुनाई पड़ता है। संगीत में स्वाद आता है। स्वाद में स्पर्श मालूम होता है। तर्क की सभी कोटियां (कैटेगोरीस) टूट जाती हैं। और बेचारे अरस्तु के सभी नियम उलट-पुलट हो जाते हैं। कुछ भी समझ में नहीं आता है और फिर भी सब सदा से जाना हुआ मालूम होता है। कुछ भी कहा नहीं जाता है और फिर भी सब जीभ पर रखा प्रतीत होता है। गूंगे के गुड़ का अर्थ पहली बार समझ में आता है। आनंदित होओ कि ऐसा हुआ है। अनुगृहीत होओ कि प्रभु की अनुकंपा है।

     - ओशो 

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