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    जो लोग सोचते हैं कि समाजवाद पूंजीवाद के लिए विकल्प है, वे गलत सोचते हैं - ओशो

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    जो लोग सोचते हैं कि समाजवाद पूंजीवाद के लिए विकल्प है, वे गलत सोचते हैं - ओशो 


    मैंने सुना है, एक आदमी का इलाज होता था । उसे कोई नई से नई दवा और औषधि दी गई थी। लेकिन उसका दुष्परिणाम हुआ, और दुष्परिणाम को रोकने के लिए उसे फिर पहली दवा की विरोधी दवा दी गई। और उसका दुष्परिणाम हुआ और उसे उसकी विरोधी दवा दी गई। और वह आदमी इतना घबड़ा गया कि उसने डाक्टर से कहा कि डाक्टर, प्लीज गिव मी बेक माई डिसीज़, मुझे मेरी बीमारी ही आप वापस लौटा दें तो अच्छा है। मनुष्य जाति समानता के आग्रह में उस हालत में पहुंच सकती है कि हमें लगने लगे कि वह हमारा पूंजीवाद वापस लौटा दें तो अच्छा है। लेकिन ध्यान रहे, जगत में कुछ भी वापस नहीं लौटता है। और यह भी ध्यान रहे कि पूंजीवाद तो जगत में अब नहीं टिक सकेगा, वह तो जाएगा।

    लेकिन पूंजीवाद जाएगा इसका यह अनिवार्य मतलब नहीं है कि समाजवाद आएगा। लेकिन मार्क्स और उसके साथियों और उसके अनुयायियों ने इतने जोर का प्रचार किया है कि पूंजीवाद का जाना और समाजवाद का आना पर्यायवाची हो गए हैं जो कि बड़ी अजीब बात है । पूंजीवाद जा सकता है और समाजवाद के आने की अनिवार्यता नहीं है। कुछ और भी लाया जा सकता है। लेकिन धीरे-धीरे हमें यह दिखाई ही पड़ना छूट गया कि पूंजीवाद के हटने के बाद सिवाय समाजवाद के क्या विकल्प है, क्या अल्टरनेटिव है । और मैं आपसे कहता हूं, पूंजीवाद के पास अपनी एक व्यक्तिगत स्वतंत्रता है।

    एक-एक मनुष्य के स्वभाव के अनुकूल उसे विकसित होने का मौका है। निश्चित ही असमानता इतनी ज्यादा है और दरिद्रता इतनी ज्यादा है कि इस असमानता के कारण और आर्थिक वैषम्य के कारण, , प्रत्येक व्यक्ति को पूरा मौका नहीं मिलता कि वह विकसित हो सके। स्वतंत्रता बहुत है लेकिन स्वतंत्रता का उपयोग केवल वे ही लोग कर सकते हैं जो आर्थिक रूप से संपन्न हैं। विकल्प यह है कि हम सारे लोगों को आर्थिक रूप से राष्ट्र के विपन्न कर दें। राज्य के हाथ में सब कुछ सौंप दें। एक-एक व्यक्ति की व्यक्तिगत संपदा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता सब राज्य के हाथों में चली जाए। समाजवाद का मूलभूत अर्थ होगा राज्यवाद। समाजवाद का मौलिक अर्थ होगा स्टेट कैपिटीलिज्म ।

    समाजवाद पूंजीवाद का ही दूसरा रूप है। इसलिए जो लोग सोचते हैं कि समाजवाद पूंजीवाद के लिए विकल्प है, वे पहली तो गलत बात यह सोचते हैं कि वह विकल्प है। दूसरी बात वे यह गलत सोचते हैं कि वही अनिवार्य विकल्प है। समाजवाद पूंजीवाद का ही रूपांतरण है और रूपांतरण खतरनाक है क्योंकि पूंजीवाद में संपदा व्यक्तिगत है और समाजवाद में संपदा राज्य के हाथों में होगी, स्टेट के हाथों में होगी। फर्क इतना पड़ेगा कि आज जो वर्ग भेद है वह पूंजी के मालिक और मजदूर के बीच है, कल जो भेद होगा वह स्टेट के मैनेजर्स और जनता के बीच होगा। और अभी जो शक्ति बहुत से लोगों में विभाजित है, बहुत से पूंजी के मालिकों में, वह सारी की सारी शक्ति राज्य के हाथ में केंद्रित होगी।

     - ओशो 

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