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    स्मरण—एक का - ओशो

    Remembrance-of-the-One-Osho


    स्मरण—एक का - ओशो 

    सदैव एक का स्मरण रखो जो कि शरीर के भीतर है। चलते हुए, बैठे हुए, खाते हुए—या कुछ भी करते हुए एक का स्मरण रखो, जो कि न तो चल रहा है, न ही बैठा है, न ही खा रहा है। सब करना ऊपर सतह पर है। और सब करने के पार हमारा होना है। इसलिए सब करने में अकर्ता के प्रति, चलने में अचल के प्रति सजग रहो।

    एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी अपने कमरे की ओर भागी—जब उसने एक भारी धम्म की आवाज सुनी। 'घबरानेवाली कोई बात नहीं' — मुल्ला ने कहा- 'मेरा यह चोगा जमीन पर गिर गया था।' 'क्या?...और इतने जोर का धमाका हुआ?'– उसकी बीबी ने पूछा। 'हां, उस समय मैं उसके भीतर जो था'— मुल्ला ने कहा।

     - ओशो 

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