मौन के तारों से भर उठेगा हृदयाकाश - ओशो
जब पहले-पहले चेतना पर मौन का अवतरण होता है, तो संध्या की भांति सब फीका-फीका और उदास हो जाता है—जैसे सूर्य ढल गया हो रात्रि का अंधेरा धीरे-धीरे उतरता हो और आकाश थका-थका हो दिनभर के श्रम से। लेकिन, फिर आहिस्ता-आहिस्ता तारे उगने लगते हैं और रात्रि के सौंदर्य का जन्म होता है। ऐसा ही होता है मौन में भी। विचार जाते हैं, तो उनके साथ ही एक दुनिया अस्त हो जाती है। फिर मौन आता है, तो उसके पीछे ही एक नयी दुनिया का उदय भी होता है। इसलिए, जल्दी न करना। घबड़ाना भी मत। धैर्य न खोना। जल्दी ही मौन के तारों से हृदयाकाश भर उठेगा। प्रतीक्षा करो और प्रार्थना करो।
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