सजग जीने की विधि और सजगता से तात्पर्य - ओशो
सजग जीने की विधि और सजगता से तात्पर्य - ओशो
सजगता से आपका क्या तात्पर्य है ? पल-पल सजग जीवन कैसे जीया जाता है?
सजगता से तात्पर्य है, बस सजगता। साधारणतः मनुष्य सोया-सोया जीता है। स्वयं की विस्मृति निद्रा है। और स्वयं का स्मरण जागृति। ऐसे जीएं कि कोई भी स्थिति स्वयं को न भुला सके। उठते-बैठते, चलते-फिरते—सब में—विश्राम में 'स्व' न भूलें। 'मैं हूं' इसकी सतत चेतना बनी रहे। फिर धीरे-धीरे 'मैं' मिट जाता है। और मात्र 'हूं' रह जाता है। ____ क्रोध आए, तो जानें कि 'मैं हूं'—और क्रोध नहीं आएगा। क्योंकि क्रोध केवल निद्रा में ही प्रवेश करता है। विचार घेरें, तो जानें कि 'मैं हूं'—और विचार विदा होने लगेंगे। क्योंकि वे केवल निद्रा के ही संगी-साथी भर हैं। और जब चित्त से काम, क्रोध, लोभ, मोह सब विदा हो जाएंगे, तब अंत में विदा होगा 'मैं', और जहां मैं नहीं वही वह है, जो ब्रह्म है।
- ओशो
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