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    ध्यान की अंतिम अवस्था तथा दिन-प्रतिदिन वृद्धि - ओशो

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     ध्यान की अंतिम अवस्था तथा दिन-प्रतिदिन वृद्धि - ओशो 

    ध्यान की गहराई में उतरने से उसकी दिन-प्रतिदिन वृद्धि किस प्रकार से होगी, और ध्यान की अंतिम अवस्था क्या है?

     आप भोजन कर लेते हैं, फिर उसे पचाना नहीं होता है, वह पचता है। ऐसे ही आप जागें विचारों के प्रति। विचारों के प्रति मूर्छा न रहे—इतना आप करें। यह है ध्यान का भोजन। फिर पचना अपने आप होता है। पचना याने ध्यान का खून बनना—ध्यान की गहराई। भोजन आप करें- और पचना परमात्मा पर छोड़ दें। वह काम सदा से ही उसने स्वयं के हाथों में ही रखा हुआ है।

    लेकिन, यद्यपि आप भोजन पचा नहीं सकते हैं, फिर भी उसके पचने में बाधा जरूर डाल सकते हैं। ध्यान के संबंध में भी यही सत्य है। आप ध्यान के गहरे होने में बाधा जरूर डाल सकते हैं। विचारों के प्रति सूक्ष्मतम चुनाव और झुकाव ही बाधा है।

    शुभ या अशुभ में चुनाव न करें। निंदा या स्तुति, दोनों से बचें। न कोई विचार अच्छा है, न बुरा। विचार सिर्फ विचार है। और आपको विचार के प्रति जागना है। सूक्ष्मतम चुनाव भी बाधा है जागने में। तराजू के दोनों पलड़े सम हों, तभी ध्यान का कांटा स्थिर होता है। और ध्यान का कांटा स्थिर हुआ कि तराजू, पलड़े और कांटा—सब तिरोहित हो जाते हैं। फिर जो शेष रह जाता है, वही समाधि है; वही ध्यान की अंतिम अवस्था है।

    - ओशो 

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