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    परमात्मा कोई व्यक्ति नहीं वरन अनुभूति का नाम है - ओशो

     

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    परमात्मा कोई व्यक्ति नहीं वरन अनुभूति का नाम है  - ओशो 


    जीवन का अंतिम ध्येय आत्म-दर्शन, आत्म- बोध है, वह मान्य है। आप प्रार्थना के लिए विरोध करते हैं। लेकिन मैं समझती हूं कि प्रार्थना एक शुभ चिंतन है और समाज में सात्विकता और पवित्रता का असर उत्पन्न करने का एक साधन है। आपका हृदयपूर्वक दिया हुआ यह व्याख्यान प्रार्थना नहीं तो और क्या है, आप शुभ चिंतन करके उसका फायदा अन्य आत्मा को देने का प्रयास करते ही हैं। इसी अर्थ में प्रार्थना शुभ कामनाओं का दूसरा नाम नहीं है क्या ?

            मेरी दृष्टि में प्रार्थना की नहीं जा सकती, प्रार्थना में हुआ जा सकता है। आप प्रार्थना में हो सकते हैं लेकिन प्रार्थना कर नहीं सकते। प्रार्थना कोई क्रिया नहीं; प्रेम की अवस्था है । साधारणतः हम कहते हैं, प्रेम करते हैं, यह वचन गलत है। प्रेम किया नहीं जा सकता; प्रेम में हुआ जा सकता है। आप प्रेम में हो सकते हैं लेकिन प्रेम कर नहीं सकते । प्रेम कोई क्रिया नहीं; भाव की एक दशा है। तो मेरा जो विरोध है वह प्रार्थना में होने से नहीं; प्रार्थना करने से है । मेरा जो विरोध है वह प्रेम में होने से नहीं; प्रेम करने से है। शिक्षा दी जाती है – हम दूसरों से प्रेम करें, यह बात ही गलत है। क्योंकि किया होगा। चेष्टा किया हुआ प्रेम मिथ्या होगा, वंचना होगा, डिसेप्शन होगा।

    जब हम प्रेम करेंगे तो क्या करेंगे? हम प्रेम का दिखावा करेंगे। प्रेम का दिखावा, प्रेम के शब्द या प्रेम की चेष्टा से किया गया व्यवहार सत्य नहीं होगा। जब हम प्रेम करने का विचार करते हैं तब यह स्पष्ट है कि हमारे भीतर प्रेम नहीं है। प्रेम हो तो प्रेम किया नहीं जाता। प्रेम की एक चित्त दशा है और प्रेम प्रवाहित होता है ।

    लेकिन साधारणतः हम प्रार्थना करते हैं। यह प्रार्थना झूठी होगी। इस प्रार्थना में आप क्या करेंगे? प्रभु की प्रशंसा करेंगे, स्तुति करेंगे। क्या आप सोचते हैं, प्रभु कोई व्यक्ति है जिसकी स्तुति हो और प्रशंसा की जा सके ? या कि आप सोचते हैं कि प्रभु कोई ऐसा व्यक्ति है जो प्रशंसा और स्तुति से प्रसन्न होगा ?

    अगर आप ऐसा सोचते हैं तो परमात्मा के संबंध में बड़ा निम्न दृष्टिकोण रखते हैं। आप सोचते हैं कि आपकी स्तुति से परमात्मा प्रसन्न होगा, तो आपने परमात्मा को किसी अहंकारी व्यक्ति की शक्ल में निर्माण कर लिया है। दूसरी बात है, क्या आप सोचते हैं कि परमात्मा कोई व्यक्ति है जिससे कोई बातचीत हो सके, जिससे हम कुछ कह सकें या कुछ निवेदन कर सकें। परमात्मा कोई व्यक्ति नहीं वरन अनुभूति का नाम है । प्रेम की स्तुति में अगर आप कुछ कहेंगे तो सुनने वाला कोई भी नहीं है। प्रेम की ही चरम अनुभूति का नाम परमात्मा है।

    जब प्रेम एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के बीच में होता है तब जो अनुभव में आता है, वह प्रेम है दूसरा व्यक्ति प्रेम नहीं है। जो अनुभूति होती है वह । और जब एक व्यक्ति और समस्त सृष्टि के बीच, समस्त जगत के बीच प्रेम का ऐसा ही संबंध फलित होता है तब जो भीतर अनुभूति होती है उस अनुभूति का नाम परमात्मा है। परमात्मा व्यक्ति नहीं है, अनुभूति है। एक कोई वस्तु नहीं है, बल्कि भीतर अनुभव का, अनुभव की एक दशा है। परमात्मा की स्तुति और प्रार्थना नहीं हो सकती। हां, आप प्रार्थना में हो सकते हैं। आप प्रेम में हो सकते हैं । और वह होने का मार्ग है कि आप जिस भांति शून्य होते जाएंगे, उसी भांति आप प्रार्थना में होते जाएंगे।

    तो मैं प्रार्थना के विरोध में नहीं हूं; प्रार्थना करने के विरोध में हूं। क्योंकि की हुई प्रार्थना झूठी होगी, सत्य नहीं हो सकती। किया हुआ प्रेम झूठा होगा, वह भी सत्य नहीं हो सकता। लेकिन हमारा सारा जीवन असत्य है । हम सारी बातें असत्य करने लगे हैं। हम प्रार्थना भी असत्य कर रहे हैं। और वैसी ही प्रार्थना सिखाई जा रही है, वह हमारी कामनाओं का ही रूप है, हमारी मांग का रूप है।

     - ओशो 

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