क्या तुम ध्यान करना चाहते हो - ओशो
क्या तुम ध्यान करना चाहते हो - ओशो
क्या तुम ध्यान करना चाहते हो? तो ध्यान रखना कि ध्यान में न तो तुम्हारे सामने कुछ हो, न पीछे कुछ हो। अतीत को मिट जाने दो और भविष्य को भी। स्मृति और कल्पना—दोनों को शून्य होने दो। फिर न तो समय होगा और न आकाश ही होगा। उस क्षण जब कुछ भी नहीं होता है—तभी जानना कि तुम ध्यान में हो।
ध्यान कैसे करें
ध्यान के लिए पूछते हो कि कैसे करें? कुछ भी न करो। बस, शांति से श्वास-प्रश्वास के प्रति जागो। होशपूर्वक श्वास-पथ को देखो। श्वास के आने-जाने के साक्षी रहो। यह कोई श्रमपूर्ण चेष्टा न हो, वरन शांत और शिथिल विश्रामपूर्ण बोध-मात्र हो। और फिर तुम्हारे अनजाने ही, सहज और स्वाभाविक रूप से एक अत्यंत प्रसादपूर्ण स्थिति में तुम्हारा प्रवेश होगा। इसका भी पता नहीं चलेगा तुम कब प्रविष्ट हो गए हो। अचानक ही तुम अनुभव करोगे कि तुम वहां हो, जहां कि कभी नहीं थे।
मौन कैसे हों
पूछते हो, मौन कैसे हों? बस, हो जाओ। बहुत विधि और व्यवस्था की बात नहीं है। चारों ओर जो हो रहा है, उसे सजग होकर देखो। और जो सुनाई पड़ रहा है, उसे साक्षी-भाव से सुनो। संवेदनाओं के प्रति होश तो पूरा हो, पर प्रतिक्रिया न हो। प्रतिक्रिया शून्य सजगता से मौन सहज ही निष्पन्न होता है।
स्वप्न में कैसे जागे
स्वप्न में— 'जो हम देख रहे हैं वह सत्य नहीं है, स्वप्न है'—इसे स्मरण रखने का उपाय है?
जो व्यक्ति जाग्रत अवस्था में यह स्मरण रखता है कि वह जो भी देख रहा है वह सब स्वप्न है, तब वह धीरे-धीरे स्वप्न में भी जानने लगता है कि जो वह देख रहा है, वह सत्य नहीं है। जाग्रत को क्योंकि हम सत्य मानते हैं, इसलिए स्वप्न भी सत्य मालूम होते हैं। जाग्रत में जो हमारे चित्त की आदत है, स्वप्न में उसी का प्रतिफलन होता है।
- ओशो
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