नाट डूइंग एनीथिंग - ओशो
नाट डूइंग एनीथिंग - ओशो
जिंदगी पूरे विरोध से मिल कर बनी है। सब चीज में विरोध है। इसलिए जो पूरी जिंदगी को समझने जाएगा, वह सब तरह के विरोधों को स्वीकार करेगा कि वे हैं। वे दोनों हैं वहां । और दोनों हैं और दोनों एक के ही रूप हैं। ऐसा अगर कोई कहेगा तो कंट्राडिक्ट्री मालूम पडेगा कि यह तो बड़ी उलटी बात हो रही है। जैसे कि समझ लें कि मैं कहता हूं कि उसे पाने के लिए कुछ भी नहीं करना है, लेकिन जो कुछ भी नहीं कर रहे हैं वे उसे पा लेंगे, यह मैं नहीं कहता । यह कंट्राडिक्शन मालूम होता है न। यानि मैं यह कहता हूं कि उसे पाने के लिए कुछ भी करना नहीं है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जो कुछ भी नहीं कर रहे हैं, वे उसे पा लेंगे। अब यह बिलकुल कंट्राडिक्ट्री बात है। लेकिन अगर मेरी बात समझ में आए तो समझ में आ जाएगी।
जब मैं कहता हूं, नाट डूइंग एनीथिंग, तो इसका मतलब यह नहीं है कि डूइंग नथिंग । नाट डूइंग एनीथिंग, इसका यह मतलब नहीं है कि डूइंग नथिंग । फिर तो कोई भी आदमी जो कुछ भी नहीं कर रहे हैं, सड़क पर चल रहे हैं, उनको मिल जाना चाहिए। यह मैं नहीं कह रहा हूं। सड़क पर चलने वाला भी कुछ कर रहा है। जिसको हम कहते, कुछ नहीं कर रहा है, वह भी कुछ कर रहा है। मंदिर में बैठा आदमी भी कुछ कर रहा है। संन्यासी भी कुछ कर रहा है। सच में ऐसी दशा में कोई भी नहीं खड़ा हो रहा है, जब कोई कुछ भी न कर रहा है।
कोई खड़ा हो जाए, तो पा ले । लेकिन यह न करना, समय निकाल कर बहुत कठिन है, कठिन, इसलिए नहीं कठिन है कि कोई टेक्नीक से सरल हो जाएगा। यह कठिन इसलिए है कि हमारी करने की आदत मजबूत है । और टेक्नीक इसे सरल नहीं बनाएगा, इसे होने ही नहीं देगा, क्योंकि टेक्नीक फिर करने की आदत को मजबूत कर देगा। यह जो मामला है सारा, यानि मैं जो कह रहा हूं कि यह जो न करना है, जैसे उन्होंने कहा कि न करने को हम टेक्नीक के द्वारा करेंगे, तो सरल हो जाएगा, क्योंकि कठिन है। कठिन मैं इसलिए नहीं कह रहा हूं कि वह सरल हो सकता है। कठिन में इसलिए कह रहा हूं कि हमारे मन की आदत करने की है, न करने की उसकी आदत नहीं है । और टेक्नीक भी करना है । मन उसके लिए राजी हो जाएगा कि चलो, करते हैं। लेकिन करे कोई कितना ही, करने से न करने पर कैसे पहुंच सकता है? डूइंग नॉन- डूइंग कैसे बन सकती? वह तो किसी न किसी क्षण उसे जानना पड़ेगा कि डूइंग से नहीं होता। और डूइंग छूट जाएगी तो नॉन-डूइंग शेष रह जाएगी।
यह जो बहुत सारी कठिनाई न करने में ठहरने की है । तो कोई भी करना पकड़ा दिया जाए आपको कि राम-राम जपिए, तो आप ठहर सकते हैं, फिर कोई कठिनाई न रही। लेकिन बात ही खत्म हो गई। वह बात ही खत्म हो गई, वह न करने में ठहरना था। फिर कई दफा हमको बड़ी, जैसा उन्होंने कहा कि कोई सपना गहरा, कोई उथला, यह सवाल ही नहीं है। जैसे कोई आदमी कहे, एक आदमी ने दो पैसे की चोरी की और एक आदमी ने दो लाख की चोरी की, तो एक की चोरी छोटी और एक की चोरी बड़ी? अगर कोई ठीक से समझेगा तो चोरी छोटी-बड़ी हो सकती है? चोरी करना एक माइंड की बात है! चोर, वह दो पैसे चुराता है कि दो लाख, यह सवाल नहीं है बिलकुल ! दो पैसे चुराने में जितना चोर होना पड़ता है, उतना ही दो लाख चुराने में भी होना पड़ता है। चोर, जो आंकड़ा है, वह दो पैसे और दो लाख का है, चोरी का नहीं है। चोरी करने वाले का जो चित्त है वह बिलकुल समान है। चाहे वह दो पैसे चुराए, चाहे एक कंकड़ चुराए, चाहे दो करोड़ चुराए। कोई यह नहीं कह सकता है कि दो पैसे चुराने वाला छोटा चोर है, दो करोड़ चुराने वाला बड़ा चोर है। बड़े और छोटे चोर होते हैं कहीं ? चोर होते हैं। छोटे और बड़े अवसर होते हैं, चोर छोटा और बड़ा नहीं होता। एक को दो पैसे चुराने का अवसर मिला है, एक को दो करोड़ चुराने का अवसर मिला है। चोर का माइंड है एक । चोरी छोटी-बड़ी नहीं होती।
- ओशो
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