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    त्राटक ध्यान - ओशो

    Tratak-Meditation-Osho


     त्राटक ध्यान  - ओशो 

    यह ध्यान चालीस मिनट का है और इसमें बीस-बीस मिनट के दो चरण हैं। पहला चरण

    पांच या छह फुट की ऊंचाई पर ओशो का एक बड़ा सा फोटो दीवार पर इस प्रकार टांगें कि फोटो पर पर्याप्त प्रकाश पड़े। शरीर पर कम से कम और ढीले वस्त्र रखें। फोटो से चार-पांच फुट की दूरी पर खड़े हो जाएं। दोनों हाथ ऊपर उठाएं, एकटक ओशो के फोटो को देखें और हू-हू-हू...की तीव्र आवाज लगातार करते हुए उछलना शुरू करें। ओशो की उपस्थिति अनुभव करें और हू-हू-हू...की आवाज तेज करें। न आंखें बंद करें, न पलकें झपकाएं।

    आंसू आते हों तो आने दें। आंखें फोटो पर एकाग्र रखें और शरीर में जो भी कंपन और क्रियाएं होती हों, उसे सहयोग करके तीव्र करें।

    महामंत्र—हू की चोट से भीतर की काम-ऊर्जा ऊपर की ओर उठेगी। दूसरा चरण

    अब सारी क्रियाएं—हू-हू-हू...की आवाज, उछलना और ओशो के चित्र को एकटक देखना—सब बंद कर दें। शरीर को बिलकुल स्थिर कर लें, आंखें मूंद लें और भीतर की ऊर्जा को अनुभव करें। गहरे ध्यान में डूब जाएं। बीस मिनट के बाद गहरे ध्यान से वापस लौट आएं।

    इस प्रकार यह त्राटक ध्यान पूरा होगा।

    त्राटक ध्यान 2

    यह प्रयोग एक घंटे का है। पहला चरण चालीस मिनट का और दूसरा बीस मिनट का। पहला चरण

    कमरे को चारों ओर से बंद कर लें, और एक बड़े आकार का दर्पण अपने सामने रखें। कमरे में बिलकुल अंधेरा होना चाहिए। अब एक दीपक या मोमबत्ती जलाकर दर्पण के बगल में इस प्रकार रखें कि उसकी रोशनी सीधी दर्पण पर न पड़े। सिर्फ आपका चेहरा ही दर्पण में प्रतिबिंबित हो, न कि दीपक की लौ। अब दर्पण में अपनी दोनों आंखों में बिना पलक झपकाए देखते रहें—लगातार चालीस मिनट तक। अगर आंसू निकलते हों तो उन्हें निकलने दें, लेकिन पूरी कोशिश करें कि पलक गिरने न पाए। आंखों की पुतलियों को भी इधर-उधर न घूमने दें— ठीक दोनों आंखों में झांकते रहें।

    दो-तीन दिन के भीतर ही विचित्र घटना घटेगी—आपके चेहरे दर्पण में बदलने प्रारंभ हो जाएंगे। आप घबरा भी सकते हैं। कभी-कभी बिलकुल दूसरा चेहरा आपको दिखाई देगा, जिसे आपने कभी नहीं जाना है कि वह आपका है। पर ये सारे चेहरे आपके ही हैं। अब आपके अचेतन मन का विस्फोट प्रारंभ हो गया है। कभी-कभी आपके विगत जन्म के चेहरे भी उसमें आएंगे। करीब एक सप्ताह के बाद यह शक्ल बदलने का क्रम बहुत तीव्र हो जाएगा; बहुत सारे चेहरे आने-जाने लगेंगे, जैसा कि फिल्मों में होता है। तीन सप्ताह के बाद आप पहचान न पाएंगे कि कौन सा चेहरा आपका है। आप पहचानने में समर्थ न हो पाएंगे, क्योंकि इतने चेहरों को आपने आते-जाते देखा है। अगर आपने इसे जारी रखा, तो तीन सप्ताह के बाद, किसी भी दिन, सबसे विचित्र घटना घटेगी—अचानक आप पाएंगे कि दर्पण में कोई

    चेहरा नहीं है— दर्पण बिलकुल खाली है और आप शून्य में झांक रहे हैं। यही महत्वपूर्ण क्षण है। ____तभी आंखें बंद कर लें और अपने अचेतन का साक्षात करें। जब दर्पण में कोई प्रतिबिंब न हो, तो सिर्फ आंखें बंद कर लें, भीतर देखें और आप अचेतन का साक्षात करेंगे।

    वहां आप बिलकुल नग्न हैं—निपट जैसे आप हैं। सारे धोखे वहां तिरोहित हो जाएंगे। यह एक सत्य है, पर समाज ने बहुत सी पर्ते निर्मित कर दी हैं, ताकि मनुष्य उससे अवगत न हो पाए। एक बार आप अपने को पूरी नग्नता में देख लेते हैं, तो आप बिलकुल दूसरे आदमी होने शुरू हो जाते हैं। तब आप अपने को धोखा नहीं दे सकते हैं। अब आप जानते हैं कि आप क्या हैं। और जब तक आप यह नहीं जानते कि आप क्या हैं, आप कभी रूपांतरित नहीं हो सकते। कारण, कोई भी रूपांतरण इस नग्न-सत्य के दर्शन में ही संभव है; यह नग्न-सत्य किसी भी रूपांतरण के लिए बीजरूप

    है। अब आपका असली चेहरा सामने है, जिसे आप रूपांतरित कर सकते हैं। और वास्तव में, ऐसे क्षण में रूपांतरण की इच्छा मात्र से रूपांतरण घटित हो जाएगा, और कछ भी करने की जरूरत नहीं है।

    दूसरा चरण 

    अब आंखें बंद कर विश्राम में चले जाएं।

    - ओशो 

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