धर्म की साधना तो हो सकती है, शिक्षा नहीं होती - ओशो
धर्म की साधना तो हो सकती है, शिक्षा नहीं होती - ओशो
मैं एक छोटे से अनाथालय में गया था। कोई सौ बच्चे थे । और अनाथालय के संयोजकों ने मुझे कहा, हमारे बच्चों को हम धर्म की भी शिक्षा देते हैं। मैं थोड़ा चकित हुआ ! मैंने कहा, धर्म की शिक्षा ! धर्म की साधना तो हो सकती है, शिक्षा नहीं होती। धर्म की शिक्षा हो ही नहीं सकती, सिर्फ साधना ही हो सकती है। शिक्षा उन चीजों की हो सकती है जो हमसे बाहर है। कोई दूसरा उन्हें हमें बता सकता है। लेकिन जो हमारे भीतर है, हमारे सिवाय और कोई उसे नहीं बता सकता। उसकी तरफ कोई इशारा ही नहीं हो सकता है। और जो भी इशारा होगा, वह झूठ हो जाएगा।
फिर भी मैंने कहा, आप कहते हैं तो मैं चलूंगा। मैं गया। उन्होंने कहा, आपको पता नहीं, हम सच में ही शिक्षा देते हैं। सौ बच्चे थे। अनाथ बच्चे थे । अब अनाथ बच्चों को तो जो भी सिखाया जाए, सीखना ही पड़ेगा। उन संयोजक ने उन बच्चों से पूछा, ईश्वर है? उन सब बच्चों ने हाथ ऊपर उठा दिए। जैसे कोई गणित का सवाल हो या जैसे कोई भूगोल या इतिहास की बात हो। उन बच्चों ने हाथ ऊपर उठा दिए कि हां, ईश्वर है। सौ बच्चों ने !
मैं बहुत चकित हुआ ! 1 मैंने कहा, आदमी मरते तक पता नहीं लगा पाता ईश्वर के होने का, इन बच्चों को अभी से पता लग गया, यह बिलकुल चमत्कार है! उन संयोजक ने पूछा कि आत्मा है? उन बच्चों ने फिर हाथ उठा दिए। उन संयोजक ने पूछा, आत्मा कहां है? उन बच्चों ने हृदय पर हाथ रख दिए कि यहां।
मैंने एक छोटे से बच्चे से पूछा कि तुम बताओगे हृदय कहां है? उसने कहा, यह तो हमें सिखाया नहीं गया। जो सिखाया गया, वह हम बता रहे हैं। यह हमारी किताब में ही नहीं लिखा हुआ है; आप पूछते हैं हृदय कहां है? उसमें लिखा है, आत्मा यहां है, वह हम बता रहे हैं।
ये बच्चे कल बड़े हो जाएंगे, बूढ़े हो जाएंगे। सभी बच्चे एक दिन बूढ़े होते हैं । जो बूढ़े हो गए हैं, वे भी एक दिन बच्चे ही थे। ये बच्चे कल बड़े होंगे, बूढ़े होंगे और भूल जाएंगे कि वह हाथ, जो इन्होंने ईश्वर के लिए उठाया था, सिखाया हुआ हाथ, सिखाए हुए हाथ झूठे हाथ होते हैं। बुढ़ापे में भी इनसे कोई पूछेगा, ईश्वर है ? वह बचपन से सीखी गई बात उठ कर खड़ी हो जाएगी। ये कहेंगे, हां, ईश्वर है। लेकिन वह बात सरासर झूठी होगी, क्योंकि सिखाई गई है, जानी नहीं गई है।
- ओशो
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