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    उपलब्धि का द्वार हैः वर्तमान में खड़े होना - ओशो

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    उपलब्धि का द्वार हैः वर्तमान में खड़े होना - ओशो 


    उपलब्धि का द्वार हैः वर्तमान में खड़े होना । और इसलिए इस दिशा में थोड़ा सा काम शुरू करें, इस दिशा में थोड़ा सा काम शुरू करें, चौबीस घंटे में आधा घंटा, पंद्रह मिनट के लिए द्वार बंद करके अंधेरे में चुपचाप बैठ जाएं, कुछ भी न करें। कुछ भी न करें, चुपचाप बैठ जाएं। बोलने में ऐसा लगता है कि बैठना भी करना ही हुआ, बोलने में वैसा ही लगता है कि मुट्ठी खोलना भी करना ही हुआ, बोलने भर ऐसा लगता है। असल में बैठ जाने का मतलब है कि जो-जो आप करते थे वह न करें, जो-जो कर रहे थे चौबीस घंटे वह न करें। चुपचाप अंधेरे में बैठ जाएं आधे घंटे को और ऐसा छोड़ दें अपने को कि हम कुछ कर ही नहीं रहे हैं।

    जैसे एक सूखा पत्ता वृक्ष से गिरे, बस, हवाएं उसको पूरब ले जाएं तो पूरब चला जाए, पश्चिम ले जाएं तो पश्चिम चला जाए। न ले जाएं तो गिर जाए जमीन पर, लेकिन अपनी तरफ से कहीं न जाए। इस बात को थोड़ा समझना । एक गिरता हुआ पत्ता है वृक्ष से, सूखा पत्ता गिर रहा है नीचे, उसकी अब अपनी कोई इच्छा नहीं, अब उसे कही पहुंचना नहीं, अब उसे कुछ होना नहीं, अब तो हवाओं की इच्छा पर उसने छोड़ दिया अपने को – सरेंडर्ड – समर्पित है। हवाएं पूरब ले जाती हैं पूरब चला, पश्चिम ले जाती हैं पश्चिम चला, नहीं ले जाती हैं गिर गया, उठा लेती हैं आकाश में उठ गया, नहीं उठाती हैं जमीन पर विश्राम करता है।

    बस सूखे पत्ते का भाव समझ लें और एक आधा घंटे के लिए द्वार बंद करके सूखे पत्ते हो जाएं। अपनी तरफ से कुछ न करें, इसका मतलब यह नहीं सब होना बंद हो जाएगा । विचार चलेंगे, पर उनको हवाओं का धक्का समझें, इससे ज्यादा नहीं। हवाएं विचार इधर ले जाएं जाने दें, हवाएं विचार इधर ले जाएं जाने दें, आप न रोकें, न ले जाएं, आप कोई भी काम न करें। ले जाने का भी काम मत करें, रोकने का भी काम मत करें। आप बस साक्षी हो जाएं और देखते रहें कि सूखे पत्ते की तरह हैं, हवाएं जो कर रही हैं, कर रही हैं। परमात्मा जो करवा रहा है, हो रहा है। परमात्मा कह रहा है बुरे विचार करो तो बुरे विचार हो रहे हैं, परमात्मा कह रहा है अच्छे विचार करो तो अच्छे विचार हो न हमें अच्छे से मतलब है, न हमें बुरे से मतलब है। हम निर्णायक ही नहीं हैं, हम कोई डिसीजन नहीं लेते, हम कोई कुछ भी नहीं करते, हम सिर्फ ना कुछ होकर बैठ गए हैं।

    बड़ा मुश्किल है क्योंकि धार्मिक आदमी को निरंतर यह सिखाया जाता है: बुरा विचार छोड़ो, अच्छा विचार करो; बुरे विचार को मत आने दो, अच्छे को लाओ।

    फिर आपने करना शुरू कर दिया, फिर आप उलझ गए चक्कर में। फिर आप वर्तमान में न हो सकेंगे, क्योंकि वर्तमान में विचार आया है और भविष्य में अच्छा विचार है, अब जिसको लाना है और वर्तमान को हटाना है और भविष्य को लाना है। आप उपद्रव में पड़ गए, फिर वर्तमान में होना असंभव है।

     - ओशो 

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