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    परमात्मा का अनुभव एक क्षण में हो जाता है, लेकिन परमात्मा को सहने में थोड़ा वक्त लग जाता है - ओशो

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    परमात्मा का अनुभव एक क्षण में हो जाता है, लेकिन परमात्मा को सहने में थोड़ा वक्त लग जाता है - ओशो 


    अंधेरा एक रात का हो कि हजार साल का हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । दीया जलता है और अंधेरा मिटता है। असल में अंधेरे की कोई पर्तें नहीं होतीं कि एक दिन का अंधेरा और दो दिन का अंधेरा तो दोहरी पर्त हो जाए कि तीन दिन का अंधेरा तो तिहरी पर्त हो जाए। अंधेरे की कोई पर्त नहीं होती कि वह डेंस हो जाए, घना हो जाए। अंधेरा वह घना नहीं होता, अंधेरा बस अंधेरा है और एक दीये की लौ सब तोड़ देती है।

    पाप की भी कोई पर्त नहीं होती, क्योंकि पाप भी अंधेरा है। अज्ञान है, अविद्या है, उसकी भी कोई पर्त नहीं होती। लेकिन सवाल सिर्फ इतना है, सवाल सिर्फ इतना है कि हम वहां खड़े हो जाएं जहां द्वार खुलता है। हां, पाप की आदत होती है, पर्त नहीं होती है, अंधेरे की भी आदत होती है।

    यह हो सकता है एक आदमी वर्षों से अंधेरे में रहा हो, द्वार खोल दे, रोशनी आ जाए लेकिन उसकी आंख बंद हो जाए, यह हो सकता है। यह हो सकता है कि सालों से अंधेरे में रहा आदमी द्वार खोल दे, रोशनी भीतर आ जाएगी फौरन उसके द्वार खोलने में और रोशनी के आने में क्षण का भी फासला नहीं होगा - युग पथ । ऐसा द्वार खुला इधर रोशनी आई, इधर द्वार खुलता गया रोशनी आती गई। द्वार का खुलना और रोशनी का आना एक ही क्रिया के दो हिस्से होंगे।

    लेकिन यह हो सकता है कि सैकड़ों वर्षों से अंधेरे में रहे आदमी की आंखें रोशनी देखने में असमर्थ हो जाए। वह आंख बंद कर ले और फिर अंधेरे में हो जाए, यह हो सकता है। अंधेरे की आदत हो सकती है, पाप की भी आदत हो सकती है। पर्त नहीं होती है। लेकिन आदत तोड़ी जा सकती है।

    आदत समझपूर्वक ही अपने आप टूट जाती है। आदत तोड़ना बहुत कठिन नहीं है । अगर अंधेरे की पर्तें होतीं तो तोड़ना बहुत कठिन था। रोशनी आ गई है, आंख बंद हो गई है, वह आदमी धीरे-धीरे आंख – एक बार, दो बार, धीरे-धीरे, धीरे-धीरे रोशनी का अभ्यस्त हो सकता, आंखें थोड़ी देर में खोल लेगा, रोशनी देख लेगा, बंद भी कर सकता है बीच-बीच में, खोल भी सकता है, धीरे-धीरे रोशनी का भय मिट जाएगा, वह रोशनी में जीने लगेगा।

    परमात्मा का अनुभव एक क्षण में हो जाता है। लेकिन परमात्मा को सहने में थोड़ा वक्त लग जाता है । सहने में, क्योंकि इतनी बड़ी शक्ति और इतना बड़ा प्रकाश हम पर उतरता है, थोड़ा वक्त लग जाता है। कई बार तो हम घबड़ा कर वापस तक लौट सकते हैं, डर भी सकते हैं, क्योंकि आनंद भी अगर एकदम से उतर आए, तो प्राणों को कंपा जाता है। परमात्मा की उपलब्धि तो एक क्षण में हो जाती है। हां, उपलब्धि के लिए राजी होने में थोड़ा वक्त लग सकता है, वह दूसरी बात है।

     - ओशो 

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