बाहर सिर्फ रास्तों की धूल है, आनंद बाहर नहीं है - ओशो
बाहर सिर्फ रास्तों की धूल है, आनंद बाहर नहीं है - ओशो
ध्यान का विज्ञान कहता है कि पहला तल बोलने का है, दूसरा तल सोचने का है, तीसरा तल दर्शन का है। पश्यंति का अर्थ है : देखना; जहां शब्द देखे जाते हैं। मोहम्मद कहते हैं: मैंने कुरान देखी, सुनी नहीं। वेद के ऋषि कहते हैं: हमने ज्ञान देखा, सुना नहीं। मूसा कहते हैं : मेरे सामने टेन कमांडमेंट्स प्रकट हुए, दिखाई पड़े, मैंने सुने नहीं। यह तीसरे तल की बात है, जहां विचार दिखाई पड़ते हैं, सुनाई नहीं पड़ते हैं।
तीसरा तल भी ध्यान के हिसाब से मन का आखिरी तल नहीं है। चौथा एक तल है, जिसे ध्यान का विज्ञान परा कहता है। वहां विचार दिखाई भी नहीं पड़ते, सुनाई भी नहीं पड़ते। और जब कोई व्यक्ति देखने और सुनने से नीचे उतर जाता है, तब उसे चौथे तल का पता चलता है। और उस चौथे तल के पार जो जगत है, वह ध्यान का जगत है।
ये चार हमारी पर्ते हैं। इन चार दीवारों के भीतर हमारी आत्मा है। हम बाहर के परकोटे की दीवार के बाहर ही जीते हैं। पूरे जीवन शब्दों की पर्त के साथ जीते हैं और स्मरण नहीं आता कि खजाने बाहर नहीं हैं, बाहर सिर्फ रास्तों की धूल है। आनंद बाहर नहीं है, बाहर आनंद की धुन भी सुनाई पड़ जाए तो बहुत। जीवन का सब-कुछ भीतर है—जड़ों में, गहरे अंधेरे में दबा हुआ। ध्यान वहां तक पहुंचने का मार्ग है।
पृथ्वी पर बहुत से रास्तों से उस पांचवीं स्थिति में पहुंचने की कोशिश की जाती रही है। और जो व्यक्ति इन चार स्थितियों को पार करके पांचवीं गहराई में नहीं डूब पाता, उस व्यक्ति को जीवन तो मिला, लेकिन जीवन को जानने की उसने कोई कोशिश नहीं की। उस व्यक्ति को खजाने तो मिले, लेकिन खजानों से वह अपरिचित रहा और रास्तों पर भीख मांगने में उसने समय बिताया। उस व्यक्ति के पास वीणा तो थी, जिससे संगीत पैदा हो सकता था; लेकिन उसने उसे कभी छुआ नहीं, उसकी अंगुलियों का कभी कोई स्पर्श उसकी वीणा तक नहीं पहुंचा।
- ओशो
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